किरोड़ी लाल के सहारे राजस्थान का किला बचाना चाहते हैं शाह

जयपुरः राजस्थान में भले ही विधानसभा चुनाव का औपचारिक ऐलान नहीं हुआ हो, लेकिन राजनीतिक दल अभी से सियासी गणित फिट करने में जुट गए है। किरोड़ी लाल मीणा की नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता पार्टी (राजपा) का बीजेपी (बीजेपी) में विलय इसी की एक झलक है। 2007 में प्रारम्भ हुए गुर्जर आंदोलन के दौरान भाजपा सरकार की गुर्जरों को एसटी में शामिल करने की तैयारी को देखते हुए भाजपा से अपनी राह अलग करते हुए किरोड़ी लाल ने मंत्री पद छोड़ दिया था। इसके बाद 2008 विधानसभा चुनाव में किरोड़ी व उनकी पत्नी निर्दलीय चुनाव लड़े व जीत दर्ज की। 2008 में हुए राजस्थान विधनसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की व अशोक गहलोत सीएम बने। किरोड़ी लाल मीणा की पत्नी गोलमा गहलोत सरकार में खादी ग्रामेद्योग मंत्री बनी। 20013 विधानसभा चुनाव में भी राजपा के 4 विधायक चुनकर आए। अभी हाल ही में 3 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली पराजय के बाद किरोड़ी लाल के भाजपा में वापसी की आसार को बल मिला। किरोड़ी लाल लगातार राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, वित्त मंत्री अरुण जेटली व गृह मंत्री राजनाथ सिंह के संपर्क में थे साथ ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से भी उनकी कई बार मुलाकात हो चुकी थी। हाल ही में दिल्ली में उनकी मुलाकात पीएम नरेंद्र मोदी से हुई थी, जिसके बाद भाजपा में उनकी वापसी की चर्चा जोर पकड़ ली थी। 2013 विधानसभा चुनाव में लालसोट, सिकराय, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ व आमेर विधानसभा सीट पर राजपा के विधायक जीते थे। इसके अतिरिक्त थानागाजी, बस्सी, करौली, बसेड़ी, छबड़ा, नगर, पीपल्दा, बांदीकुई, टोडाभीम, सवाई माधोपुर, व महवा में किरोड़ा लाल की नेतृत्व वाली राजपा प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे। इन सीटों पर राजपा ने भाजपा को कड़ा मुक़ाबला दिया थी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राजस्थान विधानसभा की 44 सीटों पर एसटी वोटरों का दबदबा है। इन 44 में से 29 विधानसभा क्षेत्रों में जनसंख्यां के लिहाज से मीणा जाति का वर्चस्व है। बाकी बचे सीटों पर गरासिया व सहरिया सबसे ज्यादा हैं। 2013 विधानसभा चुनाव में राजपा 134 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से जीत तो महज 4 सीटों पर मिली थी, लेकिन तकरीबन 45 ऐसे विधानसभा थे जहां राजपा को पांच हजार से 65 हजार तक वोट मिले। ऐसे में राजपा के विलय के बाद भाजपा को इसका लाभ मिलता हुआ दिख रहा है।