भीकमपुराः अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय संयोजक सरदार वी. एम. सिंह का मानना है कि देश के राजनेताओं की राजनीतिक लाभ के लिए रची जाने वाली साजिश और दगाबाजी ने किसान आंदोलनों को कमजोर करने का काम किया है। राजस्थान के अलवर जिले में भीकमपुरा स्थित तरुण भारत संघ आश्रम में चल रहे तीन दिवसीय चिंतन शिविर में हिस्सा लेने आए सिंह ने कहा, “सरकारों की नीतियां बहुत हैं, मगर नियत में खोट है। राजनीतिक दलों ने अपने स्वार्थ के लिए किसानों को जाति, धर्म, वर्ग में बांटने का काम किया है, यही कारण है कि हर वर्ग, जाति का अलग-अलग किसान संगठन है। इससे किसान की ताकत और आंदोलन दोनों ही कमजोर हुए हैं।“
उन्होंने कहा, “देश में कई लोग ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन किसान आंदोलनों के लिए लगा दिया, वहीं कुछ नेता ऐसे हुए जिन्होंने किसानों के आंदोलन को ही बेच दिया। इसके चलते किसान और नेताओं के बीच जोड़ने वाली विश्वास की कड़ी ही खत्म हो गई। इसका सीधा असर किसान आंदोलनों पर पड़ा है।“
सिंह बीते 25 वषरें से किसानों के हित की लड़ाई उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रहे हैं, जिसका लाभ यह हुआ है कि अब तक उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि मिल चुकी है। “अब हमारे साथ ऐसे लोग आए हैं, जो कानून भी जानते हैं, किसानी की भी समझ है, न्यूनतम समर्थन मूल्य किस दायरे में आता है, मिलेगा या नहीं मिलेगा, इन सबकी गहरी समझ रखते हैं। मध्य प्रदेश में तो अब भावांतर की बात हुई है, इस पर तो फैसला वर्ष 2000 में ही आ गया था।“
उन्होंने आगे कहा, “सब किसान संगठन मिलकर धान, गन्ना के दामों की बात कर रहे हैं, आपको याद होगा कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को सरकार को किसानों के दबाव में ही वापस लेना पड़ा था। अभी 193 किसान संगठन एक साथ हैं, उम्मीद करते हैं कि आने वाले समय में और संगठन भी जुड़ेंगे। हमारी कोशिश है कि खेती को फायदे का धंधा बनाएं, अगली पीढ़ी इससे भागने के बजाय इससे जुड़े और देश का किसान खुशहाली की ओर लौटे।“
सिंह ने कहा कि जबतक सभी संगठन एक नहीं होंगे, अलग-अलग लड़ेंगे, तबतक सरकारें उन्हें कुचलती रहेंगी। उन्होंने कहा, “हमारा मानना है कि, सब का लक्ष्य एक है, लिहाजा मिलकर लड़ाई लड़ी जानी चाहिए। पिछले दिनों हमने 2000 किलोमीटर की यात्रा के बाद तमाम किसानों से मिलकर दो विधेयक तैयार किए हैं। इसमें कर्ज मुक्ति, उपज की लागत का डेढ़ गुना दाम देने, किसानों की जमीन का किराया तय करने, साथ ही किसान आयोग की सिफारिश के आधार पर बीते 10 सालों का एरियर कर्मचारियों को दिए जाने वाले एरियर की तरह तय करने की बातें शामिल हैं।“
सिंह का दावा है कि किसानों पर जितना कर्ज है, उससे ज्यादा किसानों का 10 साल का समर्थन मूल्य के आधार पर एरियर बनता है, और इतने में ही सारा कर्ज चुक जाएगा और किसानों का सरकार पर बकाया रह जाएगा। किसान नेता सिंह ने कहा कि “देश की सत्ता संभालने से पहले और बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं को रोजगार के सपने दिखाए थे, मगर हुआ क्या, यह सबके सामने है। नई पीढ़ी किसानी छोड़ रही है और पिता से कहती है कि जमीन बेच दो। उसे 15 लाख रुपये भी नहीं मिले। जो दो विधेयक तैयार किए गए हैं, मंजूर होते हैं तो युवा पीढ़ी फिर किसानी की ओर लौटेगी। सरकार को हर हाल में ये मांगें माननी होंगी।“