भगवान परशुराम द्वादशी का व्रत एवं महत्व

लखनऊः हिंदी पंचांग के अनुसार वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान परशुराम द्वादशी के नाम से जाना जाता हैं। इस दिन ईश्वर विष्णु ने माता धरती के आग्रह पर धरती पर फैले अधर्म का नाश करने के लिए भगवान परशुराम के रूप में अवतार लिया और क्रूर और अधर्मी क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु के संहार के साथ ही 21 बार क्षत्रिय राजाओं का वध किया और बाद में उन्होंने महेंद्रगिरी पर्वत पर जाकर कई वर्षो तक तपस्या की।भगवान परशुराम जी को शास्त्र और शास्त्र का महाविद्वान बोला जाता हैं अर्थात् उन्हें शास्त्र विद्या का बहुत ज्ञान था क्योंकि उन्हें स्वयं ईश्वर शिव ने शास्त्र एजुकेशन दी थी और शास्त्रों (धर्म) का भी बहुत बड़ा ज्ञाता माना जाता हैं।

इस दिन व्रत करने के लिए, सुबह स्नान करके ईश्वर परशुराम की मूर्ति स्थापित कर पूरी भक्ति भावना से पूजा-अर्चना करनी चाहिए और मन में लाभ, क्रोध, ईर्ष्या जैसे विकारों को नही लाना चाहिए। यह व्रत द्वादशी की सुबह से शुरु होता हैं और दूसरे दिन त्रयोदशी तक चलता हैं । इस व्रत के फलस्वरुप धार्मिक व बुद्धिजीवी पुत्र की प्राप्ति होती हैं। इस व्रत को करने वाले दुखियो, शोषितो और पीड़ितों को हर प्रकार के दोषो से मुक्ति मिलती हैं और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं।